हिन्दू धर्म की पवित्र धरती पर, यमुना नदी के तट पर बसे दो शहर, मथुरा और वृन्दावन, कृष्ण भक्ति की सुगंध से महकते हैं। ये दोनों ही नगर कृष्ण की लीलाओं के साक्षी हैं, जहाँ उनके जन्म से लेकर उनके लीलाधाम गमन तक की कथा हर कण-कण में बसी है। आइए, आज हम यात्रा करें इन कृष्ण-भूमियों की ओर और जानें इनके इतिहास, महत्व और स्थान के बारे में।
मथुरा: जहाँ कृष्ण ने लीला का प्रारंभ किया
मथुरा, जिसे ब्रजभूमि का ह्रदय भी कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली है। यहीं पर कंस के कारागार में, वसुदेव और देवकी के आठवें पुत्र के रूप में कृष्ण का जन्म हुआ था। भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जन्मे कृष्ण ने यहीं से अपनी दिव्य लीलाओं का प्रारंभ किया।
मथुरा का इतिहास प्राचीन है। पुराणों के अनुसार, यह शहर सौरीस के राज्य के अधीन था। बाद में, यहाँ पर कई राजवंशों का शासन रहा, जिनमें यदुवंशी, शूरसेन और मौर्य शामिल हैं। कुषाण सम्राट कनिष्क के समय में मथुरा बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र बन गया था।
मथुरा के धार्मिक महत्व को समझने के लिए, हमें कुछ प्रमुख मंदिरों की यात्रा करनी चाहिए। सबसे पहले आते हैं कृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर। यहीं पर वह कारागार स्थित था, जहाँ कृष्ण का जन्म हुआ था। मंदिर के गर्भगृह में एक छोटा सा कुंड है, जिसे ‘जन्मकुंड’ कहा जाता है। माना जाता है कि यहीं पर देवकी ने कृष्ण को जन्म दिया था।
परिसर में ही केशव देव मंदिर भी है, जो भगवान विष्णु के द्वारपाल जय विजय को समर्पित है। पास में ही रंगभूमि है, जहाँ कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध किया था।
मथुरा में अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों में द्वारकाधीश मंदिर, गोपीनाथ मंदिर, जनेश्वर मिश्रघाट और विश्राम घाट शामिल हैं। इन सभी स्थानों पर कृष्ण की विभिन्न लीलाओं की झलकियां देखने को मिलती हैं।
मथुरा की पौराणिक कथाएँ और घाट:
मथुरा की पहचान भगवान कृष्ण से ही नहीं, बल्कि कई पौराणिक कथाओं से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध यहीं हुआ था, और यहीं पाण्डवों ने द्रौपदी का चीरहरण रोका था। यमुना नदी के तट पर स्थित विश्राम घाट पर एक विशाल पीपल का पेड़ है, जिसे ‘द्रौपदी का चीरहरण स्थल’ माना जाता है।
मथुरा में कई घाट हैं, जो धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख घाटों में गुप्त घाट, गणेश घाट, जनेश्वर मिश्र घाट और सीताकुंड शामिल हैं। ये घाट सुबह-शाम स्नान करने और आरती देखने के लिए श्रद्धालुओं से भरे रहते हैं।
वृन्दावन: जहाँ कृष्ण ने रास रचाया
मथुरा से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वृन्दावन, कृष्ण की बाल लीलाओं का साक्षी है। यहीं पर यमुना नदी के किनारे, कृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था। वृन्दावन को ‘व्रन्दावन धाम’ भी कहा जाता है, जो ‘वन’ और ‘वन’ शब्दों से मिलकर बना है। इसका अर्थ है ‘वनों का वन’, जो यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाता है।
वृन्दावन में अनगिनत मंदिर हैं, जो कृष्ण की विभिन्न रूपों को समर्पित हैं। सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में बांके बिहारी मंदिर, गोविंद देव मंदिर, राधादामन मंदिर, मदनमोहन मंदिर और छटी बिहारी मंदिर शामिल हैं। इन मंदिरों में होने वाली दैनिक आरतियाँ और उत्सव देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं।
वृन्दावन की प्रेममयी गलियाँ और कुंज:
वृन्दावन की गलियों में घूमना अपने आप में एक अलग अनुभव है। संकरी गलियों में बने मंदिरों, दुकानों और आश्रमों से एक खास तरह की ऊर्जा महसूस होती है। कुछ प्रसिद्ध गलियों में गोविंद घाट रोड, लालजी चौक और परिक्रमा मार्ग शामिल हैं।
वृन्दावन की गलियों में घूमते हुए आप कई कुंजों से भी मिलेंगे। कुंज शब्द का अर्थ ‘कुंज’ या ‘वन’ है। ये घने वृक्षों वाले छोटे-छोटे वन हैं, जहाँ माना जाता है कि कृष्ण और गोपियों ने रास रचाया था। वृन्दावन में निधिवन, सेवाकुंज, राधाकुंज और Vrinda Kunj जैसे कई प्रसिद्ध कुंज हैं।
अन्य आकर्षक स्थल:
मथुरा और वृन्दावन के आसपास कई अन्य आकर्षक स्थल भी हैं, जो भ्रमण के योग्य हैं।
- गोवर्धन: मथुरा से 21 किलोमीटर दूर स्थित एक पहाड़ी है। माना जाता है कि कृष्ण ने यहाँ अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर इंद्रदेव के प्रकोप से बचाया था। गोवर्धन की परिक्रमा करना एक पवित्र माना जाता है।
- बरसाना: वृन्दावन से 45 किलोमीटर दूर स्थित एक कस्बा है। होली का त्योहार यहाँ बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। बरसाना में लाडली जी का मंदिर राधा को समर्पित है।
- फतेहपुर सीकरी: आगरा से 35 किलोमीटर दूर स्थित यह मुगलकालीन शहर अपनी लाल बलुआ पत्थर की इमारतों के लिए प्रसिद्ध है।
मथुरा और वृन्दावन की यात्रा, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभवों का खजाना है। यह कृष्ण की लीलाओं को जीवंत रूप में देखने और महसूस करने का एक अनूठा अवसर है।
आशा है आपको यह लेख पसंद आया होगा। यदि आप मथुरा और वृन्दावन की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो ये लेख आपकी मदद करेगा।